मीडिया व्यावसायिक घरानों के हाथों की कठपुतली बन गया है: : मनोज श्रीवास्तव
मीडिया में अनुसूचित जाति और जनजाति से जुड़ी खबरों का प्रकाशन बहुत कम किया जाता है। आज स्थिति यह है कि दलित वर्ग की खबरें या तो प्रकाशित नहीं होती हैं या उन्हें विलम्ब से प्रकाशित किया जाता है या उनके स्वरूप में बदलाव कर दिया जाता है। दलितों की भागीदारी के बाद ही मीडिया में दलितों के मुद्दे उठें, यह अच्छा संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि आज समस्या मीडिया के आधुनिक चरित्र से है जिसमें मीडिया व्यावसायिक घरानों के हाथों की कठपुतली बन गया है और यही मुख्य वजह है कि जिसके कारण दलित वर्ग की खबरें मीडिया में अपना स्थान नहीं बना पाती।
– मनोज श्रीवास्तव, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव
– माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति एवं जनजाति का विकास : मीडिया की भूमिका, विषयक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता
दलित के विचारों को मीडिया में पर्याप्त जगह नहीं मिलती : कंसोटिया
दलित समाज की हमेशा यह शिकायत रही है कि उनके विचारों को मीडिया में पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि मीडिया में दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व ही नहीं है। हमारे देश में अनेक शोध रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं, जिसमें बताया गया है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग का प्रतिनिधित्व मीडिया में नहीं है। आज इस विषय पर चिन्तन की आवश्यकता है कि किस तरह से दलित समाज का मीडिया में प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाये एवं मीडिया की भूमिका दलित समाज के विकास में किस तरह की हो।
– जे.एस.कंसोटिया उच्चशिक्षा आयुक्त
– माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति एवं जनजाति का विकास : मीडिया की भूमिका, विषयक संगोष्ठी में विशिष्ठ अतिथि
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