ISRO ने कैप्चर किए सोलर इवेंट के निशान:पृथ्वी, सूर्य-पृथ्वी के L1 पॉइंट और चंद्रमा से सोलर स्टॉर्म की तस्वीरें लीं
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने हाल ही में आए सोलर इरप्टिव इवेंट को अंतरिक्ष में तीन अलग लोकेशन से कैप्चर किया। ये तीन लोकेशंस हैं- पृथ्वी, पृथ्वी और सूर्य के बीच L1 पॉइंट और चंद्रमा। इस सोलर इवेंट को सोलर स्टॉर्म यानी सौर आंधी भी कहा जाता है।
इसरो ने इस सोलर स्टॉर्म के सभी सिग्नेचर्स को रिकॉर्ड करने के लिए अपने सभी ऑब्जर्वेशन प्लेटफॉर्म और सिस्टम्स को तैनात कर दिया था। सोलर स्टॉर्म का असर पृथ्वी पर शनिवार को देखा गया। आदित्य L1 यान और चंद्रयान-2 ने इस इवेंट को लेकर ऑब्जर्वेशन रिकॉर्ड किए और इसकी हलचल को एनालाइज किया।आदित्य L1 के उपकरणों ने सूर्य की तरंगों को ऑब्जर्व किया
आदित्य l1 के साथ गए उपकरणों में शामिल SoLEXS और HEL1OS ने सूर्य के कोरोना और अन्य इलाकों से निकलने वाली X और M श्रेणी की तरंगों को ऑब्जर्व किया। इसके अलावा मैग्नेटोमीटर पेलोड ने भी L1 पॉइंट के पास से गुजरते हुए इस सौर आंधी को रिकॉर्ड किया।
जब आदित्य L1 इस सोलर इवेंट को सूर्य और पृथ्वी के बीच लैगरेंज पॉइंट से देख रहा था, तब भारत के चंद्रयान 2 ने इस इवेंट को लूनार पोलर ऑर्बिट से कैप्चर किया। चंद्रयान-2 के एक्स-रे मॉनिटर (XSM) ने इस जियोमैग्नेटिक तूफान से जुड़े कई सिद्धांतों को ऑब्जर्व किया है।
2003 के बाद का सबसे भीषण जियोमैग्नेटिक तूफान
ये 2003 के बाद का सबसे भीषण जियोमैग्नेटिक तूफान था। इसके चलते कम्युनिकेशन और GPS सिस्टम में रुकावट दर्ज हुई। ये तूफान सूर्य के बेहद एक्टिव क्षेत्र AR13664 से उठा था। इस क्षेत्र से X श्रेणी की तरंगों वाली आंधी चली और कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) हुआ जो धरती की तरफ आया। इस तूफान के चलते बीते कुछ दिनों में X श्रेणी के फ्लेयर्स और CMEs पृथ्वी से टकराए हैं।
ऊंचाई वाले इलाकों में इस इवेंट का असर देखने का मिला। इस घटना का भारत पर असर बेहद कम हुआ क्योंकि यह तूफान 11 मई की सुबह आया था, जब पृथ्वी के वातावरण की ऊपरी परत आयनॉस्फियर पूरी तरह बनी नहीं थी। प्रशांत महासागर और अमेरिका के ऊपर आयनॉस्फियर में काफी हलचल रिकॉर्ड की गई।
इस सोलर इवेंट की वजह से यूरोप से अमेरिका तक नजर आई नॉर्दर्न लाइट्स
आयनॉस्फियर 80 से 600 किमी के बीच होती है, जहां एक्सट्रीम अल्ट्रावायलट और एक्स-रे वाली सोलर रेडिएशन एटम और मॉलिक्यूल में आयनाइज होती है। यह लेर रेडियो वेव को रिफ्लेक्ट करने और मॉडिफाई करने का काम करती है, जिससे कम्युनिकेशन और नेविगेशन किया जाता है।
जब सोलर स्टॉर्म में मौजूद चार्ज्ड पार्टिकल्स पृथ्वी के वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के पार्टिकल्स से टकराते हैं, तो इनसे लाइट फोटोन रिलीज होते हैं। लाइट फोटोन यानी रोशनी, और ये रोशनी उस वेवलेंथ की होती है, जो आंखों को नजर आती है। यही रोशनी नॉर्दर्न लाइट्स के तौर पर दिखाई देती है। यह पृथ्वी के नॉर्दर्न हेमिस्फियर यानी उत्तरी गोलार्ध में दिखती है, इसलिए इसे नॉर्दर्न लाइट्स नाम दिया है।
Leave a Reply