लोक गायिकी के रंग, जनजातीय नृत्य गुन्नूरसाई एवं बधाई लोकनृत्य की प्रस्तुति

जनजातीय संग्रहालय में हुई “संभावना” गतिविधियां

जनजातीय संग्रहालय में वीक एंड पर नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित “संभावना” नाम से कला गतिविधियों के तहत 8 दिसंबर को ‘लोककंठ : मध्यप्रदेश की लोकगायिकी के रंग’ के अंतर्गत सुश्री संदीपा पारे, सुश्री आरती शाक्य, सुश्री चित्रांशी उखले, श्री ऋषि विश्वकर्मा, सुश्री शांभवी एवं श्री विजय गांगुलिया एवं अन्य कलाकारों द्वारा निमाड़ी, मालवी, बुंदेली और बुंदेली में लोक परंपराओं के गीतों की प्रस्तुति दी गई।

श्री संदीप उइके एवं साथी (सिवनी) द्वारा गोण्ड जनजातीय नृत्य गुन्नूरसाई की प्रस्तुति दी गई। विवाह के अवसर पर किया जाने वाला यह समूह नृत्य गोण्ड जनजातीय का प्रिय नृत्य है। इसमें पुरुष नर्तकों और वादकों का समूह भाग लेता है। नृत्य में ढोल, टिमकी और झाँझ मुख्य वाद्य यन्त्र होते हैं, टिमकी की संख्या ढोल से दोगुनी होती है। ढोल, टिमकी और झाँझ की समवेत ध्वनि दूर गरजने वाले बादलों की गंभीर घोष की तरह सुनाई देती है। थोड़े-थोड़े विश्राम के साथ यह नृत्य रात भर चलता है।

अगले क्रम में समर्थ संघ लोक कला संस्था (सागर) के कलाकारों द्वारा बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। बुन्देलखण्ड अंचल में जन्म विवाह और तीज-त्यौहारों पर बधाई नृत्य किया जाता है। मन्नत पूरी हो जाने पर देवी-देवताओं के द्वार पर बधाई नृत्य होता है। इस नृत्य में स्त्रियां और पुरुष दोनों ही उमंग से भरकर नृत्य करते हैं। बूढ़ी स्त्रियां कुटुम्ब में नाती-पोतों के जन्म पर अपने वंश की वृद्घि के हर्ष से भरकर घर के आंगन में बधाई नाचने लगते हैं। नेग-न्यौछावर बांटती हैं। मंच पर जब बधाई नृत्य समूह के रूप में प्रस्तुत होता है, तो इसमें गीत भी गाये जाते हैं। बधाई के नर्तक, चेहरे के उल्लास, पद संचालन, देह की लचक और रंगारंग वेशभूषा से दर्शकों का मन मोह लेते हैं। इस नृत्य में ढपला, टिमकी, रमतूला और बांसुरी जैसे वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।

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