30 करोड़ से अधिक लोग डिप्रेशन से पीड़ित
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनिया में 30 करोड़ से अधिक लोग डिप्रेशन (अवसाद) से पीड़ित हैं। साल 2005 से 2015 के बीच इस तरह के मामलों में 18 फीसद से अधिक की वृद्धि हुई है। साल 2015 में 56 लाख भारतीय अवसाद से पीड़ित थे, जो देश की कुल आबादी का 4.5 फीसद है।
इस बीमारी के बारे में लोगों को शिक्षित करने और लोगों को इससे जुड़े मिथकों के बारे में भी जागरुक करने की तत्काल जरूरत है। जानते हैं इसके बारे में…
डिप्रेशन सिर्फ मायूस होना है
अवसाद की पहली और मुख्य विशेषताओं में से मायूसी की भावना का होना है। मगर, यही एक कारण डिप्रेशन के लिए जिम्मेदार नहीं है। अक्सर, अचानक हानि या परेशान होने की वजह से मायूसी होती है, जबकि डिप्रेशन एक पुरानी मानसिक बीमारी है। अवसाद से ग्रसित व्यक्ति चिंता, उदासी, उदासीनता, अकेलापन और शून्यता की भावना जैसी कई नकारात्मक भावनाओं को महसूस करता है।
डिप्रेशन की शुरुआत के पीछे एक व्यक्तिगत कारण होता है
डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है, जो एक व्यक्तिगत हानि या दर्दनाक घटना से जुड़ी हो सकती है या नहीं भी हो सकती है। कई बार अत्यधिक तनाव, कुछ मेडिकल कंडीशन या एक निर्धारित दवा के साइड इफेक्ट के कारण भी डिप्रेशन हो सकता है। यह एक मानसिक स्थिति है जो गंभीरता से बढ़ती है और जिसे तत्काल चिकित्सा और चिकित्सीय देखभाल की जरूरत होती है।
ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण है और सामान्य जीवन नहीं जी सकता
यह धारणा पूरी तरह से गलत है और यही एक बड़ा कारण है कि डिप्रेशन का सामना कर रहे लोग कलंकित होने के डर के लिए चिकित्सकीय सहायता नहीं लेते हैं। डिप्रेशन एक मानसिक स्थिति है और इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति “पागल” है। इससे पीड़ित व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों की मदद से निश्चिततौर पर एक सामान्य जीवन जी सकते हैं। थेरेपी और मनोरोग परामर्श उनकी समस्याओं को पहचानने और उससे निपटने में मदद कर सकते हैं। एक मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति के विपरीत डिप्रेशन की समस्या से जूझ रहा व्यक्ति मामूली चिकित्सा सहायता के साथ पूरी तरह से सामान्य और स्वतंत्र जीवन जी सकता है।
खुश हो जाओ, यह सब मन में है
अवसाद से पीड़ित व्यक्ति को अक्सर अत्यधिक संवेदनशीन होने के कारण दोषी ठहराया जाता है। लोग यह देखने में विफल रहते हैं, वह डिप्रेशन का सामना कर रहा व्यक्ति कैसे प्रभावित महसूस कर रहा है। असंवेदनशील बातें कहने जैसे अपनी भड़ास को निकालो या खुश रहो कहने के बजाय सहायक और सहानुभूति देना बहुत महत्वपूर्ण है। मरीज को दोष देने से यह समस्या और खराब हो सकती है और आत्महत्या करने के विचारों को बल दे सकती है।
निराश लोग आपका ध्यान चाहते हैं
अवसादग्रस्त व्यक्ति वास्तव में लोगों का ध्यान नहीं खींचना चाहता है। वे चाहते हैं कि लोग उन्हें अकेला छोड़ दें और और वे एकांत में रहना चाहते हैं। आप अक्सर उन्हें यह कहते हुए सुनेंगे कि वे सब लोगों को छोड़कर भाग जाना चाहते हैं। इसलिए अगली बार जब कोई व्यक्ति अवसादग्रस्त व्यक्ति ऐसी बातें कहे, तो उससे यह नहीं कहें कि वह ऐसा लोगों का ध्यान खींचने के लिए कर रहा है।
निराशा से पीड़ित व्यक्ति को परिवार और दोस्तों से बहुत मदद और उसे समझने की जरूरत होती है। ऐसे दुखों को समझना मुश्किल है क्योंकि यह शारीरिक नहीं, मानसिक होती है। इस समस्या से जूझ रहे लोगों के साथा हमदर्दी रखने और उनके प्रति सहानुभूति रखने की जरूरत होती है।
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